लेखनी कहानी -15-Feb-2023 पासा पलट गया
कलेक्ट्रेट पर भीड़ हंगामा करने लगी । हजारों की संख्या में लोग एकत्रित होकर नारे लगा रहे थे
"सरकारी भूमि
मुक्त कराओ "
नाजायज कब्जा
अभी हटाओ, अभी हटाओ
पुलिस को बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही थी भीड़ से निपटने में । भीड़ की मांग थी कि अतिक्रमण अभी हटना चाहिए । पुलिस ने वाटर कैनन से ठंडे पानी की बौछार कर दी । कुछ लोग डरकर भाग गये मगर अधिकांश लोग डटे रहे । लाठीचार्ज करने से पुलिस हिचकिचा रही थी क्योंकि इससे मीडिया में पुलिस को गुंडा, बदमाश बताया जा सकता था । आखिर प्रशासन ने भीड़ में से पांच लोगों के प्रतिनिधिमंडल को वार्ता के लिए बुलाया । पांच के बजाय 11 आदमी वार्ता के लिए कलेक्टर के चैंबर में पहुंचे तो कलेक्टर ने मौके की नजाकत देखकर उन्ह अनुमति दे दी ।
वार्ता में एक ही बात कही गई थी कि सरकारी जमीन पर उमाकांत त्रिपाठी ने अनाधिकृत कब्जा कर रखा है । उसने बीच रास्ते पर मकान बना लिया है और वह उसमें ठाठ से रहता है । उससे मकान खाली करवाया जाकर उस पर बुलडोजर चलाया जाये । यही एकमात्र मांग थी प्रदर्शनकारियों की । जब तहसीलदार से रिकॉर्ड की जानकारी ली गई तो तहसीलदार ने कहा
"जमीन सरकारी है और रिकॉर्ड में गैर मुमकिन रास्ता दर्ज है । इस जमीन पर 20 वर्षों से उमाकांत त्रिपाठी ने अनाधिकृत कब्जा कर रखा है और सिविल न्यायालय से स्टे ले रखा है"
कलेक्टर ने भीड़ को समझाने की कोशिश की कि जब तक सिविल कोर्ट का स्टे है तब तक इसे नहीं हटाया जा सकता है इसलिये पहले स्टे हटवाना होगा फिर अनाधिकृत कब्जा हट सकेगा । प्रदर्शनकारियों को इससे कोई मतलब नहीं था । उन्हें तो बस अतिक्रमण हटवाना था । इसी बिंदु पर बात नहीं बन पा रही थी । कलेक्टर ने सबको बढिया सा नाश्ता करवाया और ठंडा "पेय" पदार्थ पिलवाया । पेट में मिष्ठान और ठंडा पेय पहुंचने के बाद प्रदर्शनकारी कुछ झुके और उन्होंने सात दिन का अल्टीमेटम देकर आंदोलन स्थगित कर दिया ।
अगले दिन सरकारी वकीलों की फौज न्यायालय में उतार दी गई । न्यायालय ने जल्दी सुनवाई का नोटिस जारी कर दिया । उमाकांत त्रिपाठी के वकील ने पूरा जोर लगा दिया कि इस पर सुनवाई नहीं हो मगर जनता के आक्रोश को देखते हुए मजिस्ट्रेट ने सुनवाई की तारीख नियत कर दी । उभय पक्ष की बहस सुनने के बाद स्टे हटाने का आदेश पारित हो गया । इस सब कार्यवाही में दस दिन गुजर गये । प्रदर्शनकारी फिर से कलेक्ट्रेट पर इकठ्ठा हो गये । प्रशासन पर आंदोलनकारियों का दवाब बहुत ज्यादा था इसलिए कलेक्टर ने एस डी एम और थानेदार को तुरंत अतिक्रमण हटाने को कह दिया ।
कलेक्टर के आदेश की पालना एस डी एम को करानी थी । उसने नगरपालिका से बुलडोजर मंगवा लिया । पुलिस ने अपना मोर्चा संभाल लिया । बुलडोजर चलने लगा । मौके पर भीड़ इकठ्ठी होकर जोर जोर से नारे लगा रही थी और अधिकारियों को अतिक्रमण हटाने को प्रोत्साहित कर रही थी । उमाकांत त्रिपाठी को भू माफिया , गुंडा, बदमाश और न जाने क्या क्या कह रही थी ।
उमाकांत त्रिपाठी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं था । उसने येन केन प्रकारेण रास्ते की भूमि पर अतिक्रमण करके कोर्ट से स्टे ले रखा था तो इसमें पक्ष विपक्ष के नेता , अधिकारी, पुलिस, वकील और कोर्ट सबने उसकी मदद की थी । वर्षों की तपस्या का परिणाम था कि उमाकांत ने एक आलीशान भवन बना लिया था उस सरकारी जमीन पर । अब उस भवन को टूटते कैसे देख सकता था वह । उसका सुंदर सपना टूटता हुआ सा लग रहा था ।
उसने आखिरी चाल चली । अपनी पत्नी करुणा को समझाया कि अब उसे अपनी भूमिका निभानी पड़ेगी । उसका कौशल ही इस विपदा को रोक सकता है । करुणा को योजना समझाई गई । उस योजना को सुनकर करुणा डर के मारे कांप गई । उसने मना कर दिया पर उमाकांत ने बच्चों का वास्ता दिया । आखिर घर परिवार की इज्ज़त का मामला था । पत्नियों का तो यह मूल कर्तव्य है कि वह परिवार के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करे । तो करुणा इसके लिए राजी हो गई ।
उमाकांत पेट्रोल की शीशी ले आया और उसने उसे करुणा के ऊपर छिड़क दिया । करुणा एस डी एम के सामने जाकर बोली "इस अभियान को रोक दो नहीं तो मैं आत्मदाह कर लूंगी" । एस डी एम ने इसे गीदड़ भभकी माना और अपना अभियान चालू रखा । करुणा ने डराने के लिए माचिस की तीली भी जला ली । असावधानी वश उस तीली से करुणा के कपड़ों ने आग पकड़ ली । अब करुणा चिल्लाने लगी । पेट्रोल की आग तुरंत पकड़ती है और एक झटके में सब कुछ जला देती है ।
करूणा की चीख पुकार सुन कर उसकी बेटी काजल का दिल दहल उठा । उसने अपनी मां को आग के गोले में तब्दील होते हुए देखा । वह दौड़कर करुणा के पास गई और उसे पकड़कर घर के अंदर ले आई । तब तक काजल के कपड़ों ने भी आग पकड़ ली थी । यह हालत देखकर उमाकांत त्रिपाठी को सांप सूंघ गया वह घबरा कर बाहर भागा और चिल्लाने लगा
जला डाला रे, जला डाला रे
मेरे बीवी बच्चों को जला डाला रे
प्रशासन ने जुल्म कर डाला रे
मेरे बीवी बच्चों को जला डाला रे
करुणा और काजल जिंदा जल गई थी । घर धू धू करके जल रहा था । उमाकांत का पाप जलकर राख हो चुका था । इस दृश्य को देखकर जो जनता अभी तक उमाकांत त्रिपाठी को गुंडा, बदमाश, भू माफिया कह रही थी वही जनता उसे अब एक देवदूत , ब्राह्मण, भलामानुष, पंडित कहने लगी और अधिकारियों , पुलिस और बुलडोजर पर पथराव करने लगी । पल भर में पासा पलट गया । जो व्यक्ति अभी तक एक अतिक्रमणकारी था वह अचानक एक पीड़ित व्यक्ति बन गया । सब लोगों की सुहानुभूति उसके साथ हो गई । जो नेता उसके अतिक्रमण को हटाने के लिए आंदोलन कर रहे थे वही नेता अब उसके समर्थन में आंदोलन करने लगे । मीडिया में सरकार , प्रशासन ,पुलिस को नृशंस, बर्बर, हत्यारा, असंवेदनशील, क्रूर और न जाने क्या क्या बताया जाने लगा । यहां तक कि सरकार को ब्राह्मण विरोधी भी बता दिया गया ।
फिर से वार्ता का दौर शुरू हुआ । उमाकांत को दो करोड़ रुपए, एक आलीशान बंगला, एक बच्चे को सरकारी नौकरी देने के तुरंत आदेश देने पड़े । सब अधिकारियों कर्मचारियों पर हत्या का मुकदमा चलाया गया । सबको जेल में डाल दिया गया । पत्रकारों को एक एक लिफाफा और एक एक "बोतल" बांटी गई । वार्ता में बैठे नेताओं को पंचायत, नगरपालिका तथा विधायकी का टिकिट देने का आश्वासन दिया गया । आंदोलन करने वाली जनता को लाठी, डंडे, ठंडे पानी की बौछार और गोलियां मिली । घायलों को पचास पचास हजार रुपए और गोली से मरने वालों को दो दो लाख रुपए मिले । फिर सब कुछ शांत हो गया ।
श्री हरि
15. 2. 23
sunanda
26-Mar-2023 12:05 PM
nice
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Muskan khan
16-Feb-2023 09:32 PM
Very nice
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Sachin dev
16-Feb-2023 09:19 PM
Nice
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